मोक्षदा एकादशी | Mokshada Ekadashi -Margashirsha Shukla Ekadashi | Vaikunta Ekadasi Vrat Vidhi (Geeta Jayanthi Ekadasi)
मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है. इसी दिन भगवान श्री कृ्ष्ण ने महाभारत के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्जुन को श्रीमद भगवतगीता का उपदेश दिया था. इस दिन श्री कृ्ष्ण व गीता का पूजन करना चाहिए. इसके बाद आरती करके उसका पाठ करना चाहिए. मोक्षदा एकाद्शी को दक्षिण भारत में वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जता है.
गीता में भगवान श्री कृ्ष्ण ने कर्मयोग पर विशेष बल दिया है. ब्राह्राण भोजन कराकर दान आदि कार्य करने से विशेष फल प्राप्त होते है.
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी अनेकों पापों को नष्ट करने वाली है. यह एकादशी मोक्षदा के नाम से प्रसिद्ध है. इस दिन भगवान श्री दामोदर की पूजा, धूप, दीप नैवेद्ध आदि से भक्ति पूर्वक करनी चाहिए.
मोक्षदा एकाद्शी व्रत विधि | Mokshada Ekadashi Vrat Vidhi
एकादशी व्रत के दिन मुख्य रुप से दस वस्तुओं का सेवन नहीं किया जाता है. जौ, गेहूं, उडद, मूंग, चना, चावल और मसूर की दाल दशमी तिथि के दिन नहीं खानी चाहिए. इसके अतिरिक्त मांस और प्याज आदि वस्तुओं का भी त्याग करना चाहिए. दशमी तिथि के दिन उपवासक को ब्रह्माचार्य करना चाहिए. और अधिक से अधिक मौन रहने का प्रयास करना चाहिए. बोलने से व्यक्ति के द्वारा पाप होने की संभावनाएं बढती है, यहां तक की वृ्क्ष से पत्ता भी नहीं तोडना चाहिए.
व्रत के दिन मिट्टी के लेप से स्नान करने के बाद ही मंदिर में पूजा करने के लिये जाना चाहिए. मंदिर या घर में श्री विष्णु पाठ करना चाहिए. और भगवान के सामने व्रत का संकल्प लेना चाहिए. दशमी तिथि के दिन विशेष रुप से चावल नहीं खाने चाहिए. परिवार के अन्य सदस्यों को भी इस दिन चावल खाने से बचना चाहिए.
व्रत में भोग लगाने के लिये फलों का प्रयोग करना चाहिए. इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्माणों को दान-दक्षिणा देने के बाद ही होता है. व्रत की रात्रि में जागरण करने से व्रत से मिलने वाले शुभ फलों में वृ्द्धि होती है.
मोक्षदा एकाद्शी व्रत कथा | Geeta Jayanthi Ekadasi Vrat Katha
मोक्षदा एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति के पूर्वज जो नरक में चले गये है, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है. इसकी कथा इस प्रकार है. प्राचीन गोकुल नगर में वैखानस नाम का एक राजा राज्य करता था. उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्माण रहते थे. एक रात्रि को स्वप्न में राजा ने अपने पिता को नर्क मे पडा देखा, अपने पिता को इस प्रकार देख कर उसे बहुत दु:ख हुआ.
प्रात:काल होते ही वह ब्राह्माणों के सामने अपनी स्वप्न कथा कहने लगा. अपने पिता को इस प्रकार देख कर मुझे सभी ऎश्वर्य व्यर्थ महसूस हो रही है. आप लोग मुझे किसी प्रकार का तप,दान, व्रत आदि बताएं, जिससे मेरे पिता को मुक्ति प्राप्त हों. राजा के ऎसे वचन सुनकर ब्राह्माण बोले, यहां समीप ही एक भूत-भविष्य के ज्ञाता एक "पर्वत" नाम के मुनि है. आप उनके पास जाईए, वे आपको इसके बारे में बतायेगें.
राजा ऎसा सुनकर मुनि के आश्रम पर गए़ उस आश्रम में अनेकों मुनि शान्त होकर तपस्या कर रहे थे. राजा ने जाकर ऋषि को प्रणाम करके बताया कि अकस्मात एक विध्न आ गया है. यह सुनकर मुनि ने आंखे बंद कर ली. और कुछ देर बाद मुनि बोले कि आपके पिता ने अपने पिछले जन्म में एक दुष्कर्म किया था. उसी पाप कर्म के फल से तुम्हारा पिता नर्क में गए है.
यह सुनकर राजा ने अपने पिता के उद्वार की प्रार्थना ऋषि से की. मुनि राजा की विनती पर बोले की मार्गशीर्ष मसके शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है. उस एकादशि का आप उपवास करें. उस एकादशी के पुन्य के प्रभाव से ही आपके पिता को मुक्ति मिलेगी. मुनि के वचनों को सुनकर उसने अपने कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का उपवास किया. उस उपवास के पुन्य को राजा ने अपने पिता को दे दिया. उस पुन्य के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई. और वे स्वर��ग में जाते हुए अपने पुत्र से बोले, हे पुत्र तुम्हारा कल्याण हों, यह कहकर वे स्वर्ग चले गए.